प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

शनिवार, 14 अगस्त 2010

आचरण की आवश्यकता








जिस भारत को संस्कृति के रूप में याद किया जाता रहा है । आज ये संस्कृति विकृति की राह पर है, इसके लिए पाश्चात्य संस्कृति को दोष दिया जाता है जो उचित नहीं है । आज हम संस्कृति , सभ्यता की बातें करते हैं किन्तु पालन नहीं । भारतीय संस्कृति में सुबह सवेरे माँ पिता के चरण छूने की संस्कृति रही है । साथ बैठकर भोजन करना हमारी सभ्यता का हिस्सा है । हिंदी भाषा हमारी मूल संस्कृति और संस्कार है, लेकिन हमने अंग्रेजी भाषा का चलन अपनाया है , भोजन व्यवस्था बफेट को अपनाया है । हम इन सभी बातों के लिए पाश्चात्य संस्कृति को दोष देते हैं जो उचित नहीं है। माँ का शब्द प्रेम और पीड़ा से भरा था उसे भी अपनाना छोड़ दिया है । इन सबकी वजह हमारे अपने घरो से जुडी है । संस्कृति का पाठ हमारे घर से प्रारंभ होता था जो अब नहीं हो रहा है । माँ से मम्मी , ममा होते हुए अब यह यार मम्मी तक आ पहुंचा है । बच्चे की प्रथम गुरु माँ है अतः बच्चे को संस्कार घर से मिलने चाहिए । उक्त बात बालाचार्य योगीन्द्र सागरजी महाराज ने स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में कही । उन्होंने शिक्षालय को मानव से महामानव बनाए जाने का स्थान निरुपित कर कहा की । छत्रपति शिवाजी को संस्कार माता जिजा से प्राप्त हुए थे । शिवाजी , राधाकृष्णन,महावीर जैसे महापुरुष संस्कृति सुधरने से ही संभव है । भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है । हिन्दू का अर्थ है जो हिंसा से दूर रहे । अहिंसा वीरता सीखाती है । हिन्दू व्यवस्था का पालन करें । भारतीय संस्कृति को आगे बढाए । इस अवसर पर पंडित श्याम जी कृष्ण वर्मा के चित्र को स्कुल प्रांगन में लगाने हेतु अनावरण भी किया गया ।
"जयकारा सब बोलो मेरे योगी गुरुवर का " गीत से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ । यह गीत रिनी जैन ने प्रस्तुत किया । तबले पर संगत राहुल तिवारी ने की । सरस्वती प्रार्थना श्रीमती चितले दीदी ने करवाई । कपिल जी व्यास ने अतिथि परिचय दिया । स्वागत उद्बोधन प्राचार्य बालाराम जी गुप्ता ने दिया। अणुव्रत ज्योति जगाये गीत शाला के भैया बहनों ने प्रस्तुत किया । श्रीफल की भेंट प्रकाश जी मूणत , दीदी इंदिरा व्यास , नीता दीदी , दत्तात्रेय जी चाव्हाण, वीरेंद्र सकलेचा , गोपाल जी काकानी , प्रतिमा सोनटक्के दीदी , गोविन्द जी अग्रवाल, कविता दीदी , देवड़ा जी, कपिल वैष्णव , दिव्या कोठारी , मंगला बाई आदि ने प्रस्तुत कर विनयांजलि दी । इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र वृन्द उपस्थित थे ।

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