प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

रविवार, 1 अगस्त 2010

गुरुमन्त्र, श्रद्धा और विश्वास

चातुर्मास कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रवचनों कि श्रंखला का "शीतल तीर्थ धाम" पर प्रति रविवार आयोजन किया जा रहा है । बालाचार्य श्री १०८ योगीन्द्र सागर जी महाराज ने उपस्थित धर्मावलम्बियों को संबोधित कर कहा कि ऋषियों कि कही बातें ध्यान देने की है । गुरु वाक्य मंत्र का मूल है । मंत्र वही है जो मन को तर करे अर्थात तृप्ति दे, आकुलता /व्याकुलता को मिटाए । मंत्र जाप करने से दृढ विश्वास की प्राप्ति होती है । आज के युग में संदेह अधिक है इसलिए मंत्र में भी विश्वास जरूरी हो गया है । विश्वास रखने से ही मंत्र में श्रद्धा उत्पन्न होती है । विश्वास ही फल प्रदाता है । श्रद्धा परमं पापं , श्रद्धा पाप विमोचिनी कहते हुए उन्होंने कहा श्रद्धा में यदि विश्वास हो तो परमात्मा को भी चलकर आना पड़ता है इसके कई कथानक धर्म ग्रंथो में है । परमात्मा में रत व्यक्ति सुखी व् संपन्न रहता है क्योंकि विश्वास रुपी कर्म का फल सभी को मिलता है ।

बालाचार्य जी के शिष्य श्री यशोधर सागरजी ने गुरु मंत्र की महिमा एक कथानक के माध्यम से समझाई, उन्होंने बताया कि किसप्रकार सांप के काटे व्यक्ति का ईलाज मंत्र पर विश्वास मात्र से संभव हो गया ।

प्रवचन पश्चात प्रभावना का सौभाग्य बालू जी पांड्या ( लड्डूवाले सेठ ) ने लिया प्रारंभ में रतलाम के कमलेश गंगवाल, तनसुखराय गडिया, राजेश घोटीकर देलनपुर के राजाराम चोधरी, वजाराम जी, शिवगढ़ के बालाजी बाँसवाड़ा के देवचंद जैन, पंकज कुमार जैन, जिनेन्द्र जैन, नीतेश जैन आदि ने विनयांजलि स्वरुप श्रीफल भेंट किए । कार्यक्रम का संचालन डॉ सविता जैन ने किया।

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