प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

mahatapo martand aacharya sanmati sagarji ka pratham samadhi diwas par tridiwasiya ayojan sri digamberjain shitaltirth ratlam par chaturth pattachary yogindrasagarji ke sanidhya me.

दिनांक २२-१२-११ से दिनांक २४-१२-११ तक श्री दिगम्बर जैन शीतल्तीर्थ   रतलाम म० प्र० में आचार्य सन्मति सागरजी के चतुर्थ पत्ताचार्य  श्री योगीन्द्रसगार्जी के सानिध्य में मनाया गया. दी  २२-१२-११ को प० पू० वात्सल्य रत्नाकर आचार्य विमल सागरजी  का १७व समाधीदिवस पर प्रातः आचार्यश्री की प्रतिमा का पूजन अभिषेक किया गया. दोपहर की सभा को संबोधित करते हूए चतुर्थ पत्ताचार्य   श्री योगीन्द्र सागरजी ने कहा की वर्तमान में आचार्य विमल सागरजी जैसा निमित्त ज्ञानी हो नहीं सकता है, क्योंकि उनकीभविष्यवाणी  का में स्वयं  उदहारण हूँ . आचार्य विमल सागर जी महाराज  ने मेरी २७ दिन की आयो में ही घोषणा कर दी थी की ये बालक घर में नहीं रहेगा संत बनेगा, ब्राह्मन कुल में जन्म होने से किसी को कल्पना भी नहीं थी की में गौतम गणधर की परम्परा का अनुसरण  करूगा. उन्हों ने  अपने जीवन कई लोगो का उपकार किया एवं लोगो को जैन धर्मं में श्रधान मजबूत  किया . में ऐसे आचार्यशी  विमल सागरजी  के चरणों में वंदन कर स्वयं को धन्य समझाता हूँ . दि .२३-१२-११ को रिषिमंडल विधान किया गया जिसका लाभ  श्री राजेश मेहता खान्दुकोलोनी बांसवाडा  राज. परिवार ने लिया .दि .२४-१२-११ को प्रातः आचार्य श्री सन्मति सागरजी की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक किया गया .१०८ कलशो की दुग्ध धरा की गयी. दोपहर की सभा में आचार्य सन्मति सागरजी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन श्री विजय ओरा जावरा,श्री तेजकरण मालवीय,श्री कमलजी हथियावत. खान्दू कालोनी बांसवाडा आदि ने किया. पुष्पार्चन श्री अभय जैन  उज्जैन,श्री दीपक गोधा ने किया. सभा का मंगलाचरण सुप्रसिद्ध कवि श्री उत्सव जैन नौगामा राज. ने किया . सभा को श्री तनसुख राय गडिया  रतलाम,श्री अनिल पापदीवाल  रतलाम,मनोज जैन भिंड, अभय जैन एवं मुनि यद्वेंद्रनाथ मुनि यतीन्द्र नाथ आदि ने संबोधित  किया. अंत में चतुर्थ पत्ताचार्य योगीन्द्र सागर जी ने संबोधित करते हुए  समाधी के अर्थ को बताते हुए कहा  की  सम#धी का अर्थ है की जिसकी बुद्धि सम है . जो सभी परीस्थितियो में सम रहे . गृहस्थ को शरीर छोड़ता है जबकि साधू शरीर  को छोड़ता है. जब साधू को लगता है की शरीर अब धर्म साधन करने योग्य नहीं रह गया है. तो  वह शरीर का परित्याग करने को तैयार हो जाता है . मेरे गुरुदेव आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज ने १२ वर्ष की समाधी ले ली थी किन्तु १२ वर्ष पुरे होने के १२ दिन पहले  ही शरीर को छोड़ दिया . वैसे तो संत का समाधी मरण  महोत्सव का कारन होता है. किन्तु हमारे गुरु का शरीर परित्याग करना हमारे लिए अपूर्णीय क्षति है . जब तक ऊपर मस्तक पर गुरु का आशीर्वाद होता है एक निश्चिंतता  रहती है.  हमे जिस तरह गुरु ने मोक्ष मार्ग का पथिक बने है वैसे ही हमे कभी किसी भी मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी तो गुरुदेव से ले लेंगे. किन्तो अब तो जिम्मेदारी  भी बढ  गई है. में उस महान तपस्वी आत्मा को आचार्य अवस्था में ध्यान में रख कर सिद्ध भक्ति, श्रुत भक्ति , समाधी भक्ति सहित नमन करता हूँ.में आचार्य श्री का ऋणी हूँ की उन्होंने मुझे जैनेश्वरी दीक्षा देकर मुझे इस मार्ग पर लगाया है  .
   

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