प पू मुनिकुंजर आचार्य १०८ श्री आदिसागरजी म सा (अंकलीकर) परंपरा के तृतीय पट्टाधीश प पू महातपोमार्तंड आचार्य १०८ श्री सन्मतिसागरजी म सा के पट्टाधीश प पू प्रज्ञा पुरुषोत्तम सिद्धांत रत्नाकार १०८ आचार्य श्री योगीन्द्रसागर जी म सा की प्रेरणा से दिगंबर जैनाचार्य शीतलकीर्ति महाराज सा के नाम को समर्पित कर "शीतलतीर्थ" रतलाम के बाँसवाड़ा रोड पर निर्माण गया है । दिगंबर जैन शीतलतीर्थ अधिष्ठात्री डॉ सविता जैन ०९४२५३५५७४१
प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
जीवन में निश्चय एवं व्यवहार दोनों जरुरी है .
जिस तरह कोई भी गाड़ी एक पहिये से नहीं चल सकती है, उसे चलने के लिए दोनों पहिये कि आवश्यकता होती है , ठीक उसी तरह धर्म रूपी गाड़ी भी निश्चय एवं व्यवहार दोनों मार्गो कि आवश्यकता होती है। परमात्मा की प्राप्ति के लिए दोनों की आवश्यकता होती है। केवल निश्चय या केवल व्यवहार से परम सत्ता को प्राप्त नहीं कर सकते है । अतएव हमे सम्यक रूप से दोनों मार्ग अपनाने चाहिए .जहाँ चाकू की जरुरत है वहा चाकू एवं जहाँ सुई की जरुरत वहां सुई का प्रयोग ही करना चाहिए । गृहस्थ धर्म का पालन करते हुऐ। समय अनुसार प्राथमिकता तय करना चाहिए.
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