प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

जीवन में आचरण को सुधारना आवश्यक

शरदोत्सव पर आयोजित धर्मसभा में परमपूज्य आचार्य संमतिसागर के पट्टाचार्य और वरिष्ठ शिष्य आचार्य योगीन्द्रसागरजी ने कहा कि जो व्यक्ति जानने व् समझने के बाद भी आचरण में नहीं लाता उस जैसा नासमझ संसार में दूसरा नही हो सकता है.उन्होंने व्यक्तित्व विश्लेषण करते हुआ कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम का उदाहरण देते हुऐ बताया कि श्रीराम ने भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण प्रयास किये तभी वे सफल हुऐ। मनुष्य अपने किये कर्मो को स्वयं ही भोगता है । उन कर्मो को नाश करने के लिए भगवन की भक्ति करना आवश्यक है। भक्ति से ही कर्मो को नष्ट किया जा सकता है। सभा के प्रारंभ में गुरुदेव के श्रीचरणों में श्री ओमप्रकाशजी जैन भरतपुर [राज।] दीपक गोधा, महावीर गाँधी,राजेशमेहता[खान्दूकालोनी ], अशोक गंगवाल राजेश घोटीकर, जगदीश व्यास ,दीपक बरैया आदि ने श्रीफल भेट किया । प्रवचन पश्चात प्रभावना वितरण कु राधा धाणवी धामनोद परिवार द्वारा किया गया। मुनि यातिन्द्रनाथ्जी ने "जैसी करनी वैसी भरणी" भजन की प्रस्तुति से भाव विभोर कर दिया। रात्रिकालीन आयोजनों में श्री १००८ श्री चंद्रप्रभु भगवन की पूजा आराधना की परम पूज्य आचार्य श्री शीत्तलकीर्तिजी गुरु महाराज की स्तुति एवं भजन संध्या के कार्यक्रम सम्पन्न हुऐ.तत्पश्चात उपस्थित जनसमूह को दूध वितरण किया गया ।समस्त कार्यक्रम डॉ। सविता जैन के निर्देशन में सम्पन्न हुऐ।यह जानकारी शीतल तीर्थ प्रवक्ता श्री अशोक गंगवाल एवमश्री राजेश घोटीकर ने प्रदान की.

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