प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

रविवार, 19 सितंबर 2010

चौके को भोजन शाला बनावे किचन नहीं

शुद्ध चौके को भोजन शाला कहते हैं। भोजनशाला यदि शुद्ध हो तो सभी परिजन प्रसन्न रहते हैं मगर यदि चौका अशुद्ध हो तो जीवन में कीच-कीच होती है। इसलिए घर के चौके को भोजनशाला बनाए, किचन नहीं। चौके में चार तरह कि शुद्धता चाहिए मन (अन्तरंग) शुद्धि, काया शुद्धि, भोजन शुद्धि, स्थान शुद्धि। उक्त बात बालाचार्य १०८ श्री योगीन्द्र सागरजी महाराज ने गुरु योगी भक्त मंडल द्वारा धानमंडी स्थित रानी जी के मंदिर प्रांगन पर आयोजित प्रवचन कार्क्रम में कही। जीवन में चार का महत्त्व उन्होंने चार तरह के दान, चार तरह के त्याग के माध्यम से समझाया। उन्होंने त्याग कि महता भी बताई और कहा कि त्याग का फल हमेश अच्छा ही मिलता है। अपरिग्रह, देश धर्म, तीर्थ रक्षा और परोपकार को दान कि श्रेणी में रखा और कहा कि इन सभी का नियम पूर्वक पालन करना चाहिए।

प्रारंभ में दीप प्रज्वलन नगर निगम अध्यक्ष दिनेश पोरवाल एवं महेश शर्मा ने किया । श्रीफल भेंट कर विनयांजलि खेमराज व्यास, कान्हा गुरु, चन्द्र प्रकाश व्यास , पुरुषोत्तम चोरसिया, तुलसी राम व्यास, सोहन उपाध्याय, मुकेश बाफना, किशोर उज्जैनवाला, संदीप पोहावाला, बालूजीपंडया, अमृत व्यास, राजू बोहरा, प्रहलाद बन्दवार आदि ने किया। प्रभावना का पून्यार्जन देवीलाल जोशी ने लिया जबकि संचालन विष्णु त्रिपाठी ने किया ।

उक्त समाचार गुरु योगी भक्त मंडल धानमण्डी ने दिया ।

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