प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

सिन्धी समाज ने आयोजित किये प्रवचन

बालाचार्य श्री १०८ योगीन्द्र सागर जी महाराज सा के प्रवचन सिन्धी समाज बंधुओं ने भी आयोजित किए । विस्तार से अटेचमेंट पढ़ें .......
































रविवार, 19 सितंबर 2010

अखबारों से







चौके को भोजन शाला बनावे किचन नहीं

शुद्ध चौके को भोजन शाला कहते हैं। भोजनशाला यदि शुद्ध हो तो सभी परिजन प्रसन्न रहते हैं मगर यदि चौका अशुद्ध हो तो जीवन में कीच-कीच होती है। इसलिए घर के चौके को भोजनशाला बनाए, किचन नहीं। चौके में चार तरह कि शुद्धता चाहिए मन (अन्तरंग) शुद्धि, काया शुद्धि, भोजन शुद्धि, स्थान शुद्धि। उक्त बात बालाचार्य १०८ श्री योगीन्द्र सागरजी महाराज ने गुरु योगी भक्त मंडल द्वारा धानमंडी स्थित रानी जी के मंदिर प्रांगन पर आयोजित प्रवचन कार्क्रम में कही। जीवन में चार का महत्त्व उन्होंने चार तरह के दान, चार तरह के त्याग के माध्यम से समझाया। उन्होंने त्याग कि महता भी बताई और कहा कि त्याग का फल हमेश अच्छा ही मिलता है। अपरिग्रह, देश धर्म, तीर्थ रक्षा और परोपकार को दान कि श्रेणी में रखा और कहा कि इन सभी का नियम पूर्वक पालन करना चाहिए।

प्रारंभ में दीप प्रज्वलन नगर निगम अध्यक्ष दिनेश पोरवाल एवं महेश शर्मा ने किया । श्रीफल भेंट कर विनयांजलि खेमराज व्यास, कान्हा गुरु, चन्द्र प्रकाश व्यास , पुरुषोत्तम चोरसिया, तुलसी राम व्यास, सोहन उपाध्याय, मुकेश बाफना, किशोर उज्जैनवाला, संदीप पोहावाला, बालूजीपंडया, अमृत व्यास, राजू बोहरा, प्रहलाद बन्दवार आदि ने किया। प्रभावना का पून्यार्जन देवीलाल जोशी ने लिया जबकि संचालन विष्णु त्रिपाठी ने किया ।

उक्त समाचार गुरु योगी भक्त मंडल धानमण्डी ने दिया ।

रविवार, 12 सितंबर 2010

अपना संशोधन करें ....... बालाचार्य जी

जटाजूट माला तिलक
हुए शीश के भार ।
भेष बदल क्या हुआ
अपना चित्त सुधार ।।
भेस बदलने में नहीं , कौड़ी लगे छलांग ।
भेस बदलना सरल है , तू तो बदल विचार । ।
उक्त पंक्तिया बालाचार्य जी ने शीतल धाम में प्रति रविवार आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने जीवन को सहज और सरल बनाने पर जोर दिया । व्यक्ति को सन्मार्ग पर लाने के लिए गुरुओं के द्वारा किये गए प्रयासों को भी विस्तार से समझाया ।
प्रारंभ में विनयांजलि विजय जी ओर जावरा, बजरंग जी पुरोहित, राजेश जी घोटीकर, निर्मल जी जैन, पदमजी सहलावत जयंतीलाल जी जैन, डेलनपुर के फूलचंद जी, बजारामजी , कैलाश जी उपाध्याय , मोतीलाल जी पाटीदार , भरतलाल जी पाटीदार , भेरुलाल जी पाटीदार , रामलाल जी , बाबूलाल जी आदि ने श्रीफल भेंट कर कि।
अभेद मति माताजी ने सभा को सम्बोद्झित कर कहा - नियम कि महत्ता जीवन को सफल बनाती है इन्हें अंतिम साँसों तक पालन करें । अहिंसा के बिना कोई धर्म नहीं है इसलिए हिंसा त्यागें । प्रभावना का सौभाग्य धामनोद के श्री देवीलाल ने लिया ।

कर्तव्य ही धर्म है.

बाबा रामदेव को लोग बाबा रामापीर के नाम से भी जानते हैं । साईबाबा और अनेको विभूतियाँ हुई जिन्होंने भाई चारे का सन्देश पहुंचाया है । अवतारों का पूर्ण ब्योरा मिल जाता है मगर इन संतों का ब्यौरा मिलना नामुमकिन है । सामाजिक सौहार्द्रता के कई प्रयास संतों ने किए है इसीलिए इनके स्थानों पर सभी धर्म के लोग आते जाते है ।
"आज देश को दुश्मन से नहीं गद्दारों से ख़तरा है ,
खजाने को चोरों से नहीं पहरेदारों से ख़तरा है।"
उक्त बात बलाचारी श्री १०८ योगीन्द्र सागर जी महाराज ने बाबा रामदेव कि जयंती के अवसर पर आयोजित सभा में कही । उन्होंने सागोद स्थित बाबा रामदेव के मंदिर में अपने प्रवचन देते हुए कहा कि असुर, अधम और अभिमानी जब कभी पैदा होते हैं संतों या महापुरुषों को अवतरित होना पड़ता है । आज लोग अभिमान कि जकड में है । ये अभिमान ८ प्रकार के हैं । (ज्ञान /पूजा /कुल / जाति/ बल/रिद्धि/तप एवं वपु )। ज्ञान का बोध , पूजनीय हो जाने पर , जाति और कुल में जन्म , शारीरिक और जन बन , धन बल , तप कर लेने पर और रूप-सौन्दर्य का घमंड ।
बाबा रामदेव संस्कारों को प्रेरित कर गए है इनका पालन करें । आज रामापीर कि जयंती के साथ आचार्य शांति सागर जी का देवलोक प्रयाण भी हुआ है दोनों महान संतों का स्मरण कर उनके बताए आचरण अपने जीवन में उतारने का प्रयास हो।
कार्यक्रम का संचालन रामेश्वरजी मुंशी ने किया । कार्यक्रम उपरान्त भंडारे का आयोजन मंदिर समिति ने किया ।