प्रज्ञा पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

प्रज्ञा  पुरुषोत्तम श्री १०८ बालाचार्य योगीन्द्रसागरजी महाराज सा

रविवार, 13 नवंबर 2011

श्रद्धावान विवेकवान क्रियावान ही श्रावक कहलाने योग्य

श्रावक को तुलसीदास जी ने सरावग लिखा है . जो व्यक्ति श्रद्धावान विवेकवान क्रियावान है वाही श्रावक कहलाने योग्य है उक्त बात पट्टाचार्य श्री योगीन्द्र सागर जी महाराज ने तपोनिष्ठ वन्दना के अगले रविवार को संपन्न धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही. जिस श्रावक का घर आनद से परिपूर्ण हो, संतान विवेकी हो, पत्नी मृदु संभाशिणी हो, भगवान का पूजन नित होता हो, अतिथि सत्कार होता हो, संत सेवा होती हो, हाथों से नियमित दान होता हो, आज्ञापालक नौकर हो इसे श्रावक का ही गृहस्थाश्रम धन्य है.

उन्होंने प्रारंभ में " मत ले जा रे पंछी तू औरों के अंगना ................. कोई किसी का दर्द घटा दे , एसा ये संसार नहीं है." की संगीतमयी प्रस्तुति देकर उपदेश प्रदान किये.



प्रारंभ में गुरु वंदना करते हुए रतलाम विकास प्राधिकरण अध्यक्ष विष्णु त्रिपाठी ने कहा की शीतल तीर्थ की कीर्ति देश भर में विस्तार पा रही है.

सर्वश्री राजेश जैन जम्बू सोनी, दिलीप जैन, जगदीश व्यास, लोकेन्द्र सिंह, सत्येन्द्र जैन, शशांक जैन आदि ने विनयांजलि प्रस्तुत की. संचालन डॉ सविता जैन ने किया. उप्रिक्त जानकारी शीतल तीर्थ प्रवक्ता अशोक गंगवाल ने दी

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