पत्थर से प्रतिमा तराशी जा सकती है । दूध में से घी निकाला जा सकता है । जिस रूप का निर्माण चाहें बनाया जा सकता है । इसी तरह बुद्धि और विवेक के इस्तेमाल से स्वयं का निर्माण किया जा सकता है । आदमी तीन प्रकार के हैं । पहला भलाई का बदला बुराई से देता है दूसरा भलाई का बदला भलाई से देता है । तीसरा बुराई का बदला भलाई से देता है । ये तीन प्रवृत्तियाँ हर इंसान में पाई जाती हैं । पहली वृत्ति राक्षस दूसरी इंसान और तीसरी देव वृत्ति है । इसलिए बुद्धि और विवेक का सदुपयोग करना चाहिए । कंकर पत्थर निकाली गई मिटटी सुन्दर बर्तन का रूप ले लेती है । उसी प्रकार स्नेहपूर्ण वृत्ति से आदमी को अपना स्तर सुधारना चाहिए । उक्त बात बालाचार्य श्री १०८ योगीन्द्र सागर जी महाराज सा ने रविवारीय सभा को संबोधित करते हुए कही । उन्होंने कहा कि वास्तविक स्नेह धन का मोहताज नहीं होता । भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा इसका सुन्दर उदाहरण हैं । नारायण स्वरुप श्री कृष्ण और निर्धन सुदामा के प्रेम के बीच में एश्वर्य कहीं नहीं आया ।
आगामी कार्यक्रमों के सम्बन्ध में कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ सविता जैन ने बताया कि दिनांक १२ एवं १३ नवम्बर २०१० को बालाचार्य जी कि निश्रा में पेलेस रोड स्थित चिंतामन गणेश मंदिर पर कार्यक्रम होंगे इसी तरह १४ ,२१ एवं २८ नवम्बर को रविवारीय सभा शीतल धाम पर होगी । दिनांक २१ को केशलोच का आयोजन भी यहीं होगा । २८ नवम्बर को भगवन क्षेत्रपाल मंदिर के शुद्धिकरण का कार्यक्रम होगा।
कार्यकर्म के प्रारम्भ में मंगलाचरण पंडित नितिन कुमार जी ने प्रस्तुत किया भजन कि सुमधुर प्रस्तुति श्री पुखराज सेठी ने दी विनयांजलि सर्वश्री विष्णु त्रिपाठी , राजेश घोटीकर, अशोक गंगवाल , सावंत सिंह , जगदीश व्यास , सुभाषजी , जितेन्द्र जी,शांतिलाल जी, छगनलाल जी, गगन बडजात्या, केसरीमल जी, जयंती लाल जी, निर्मल जी आदि ने श्रीफल भेंट कर की। प्रभावना का पुण्य छोगालाल भरतकुमार चोधरी द्वारा लिया गया ।
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